बिहार में भूमि सर्वेक्षण का काम अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया है। सरकार ने नई नियमावली को मंजूरी दे दी है, जिससे सर्वेक्षण प्रक्रिया में दो साल से अधिक का विलंब होने की संभावना है। यह फैसला लाखों लोगों को निराश कर सकता है, जो पहले से ही मौजूदा सर्वेक्षण प्रक्रिया में हो रही गड़बड़ियों से जूझ रहे हैं।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का यू-टर्न
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पिछले साल अधिकारियों से हाथ जोड़कर और पैर पकड़कर भूमि सर्वेक्षण जल्द पूरा करने की अपील की थी। लेकिन नई नियमावली के साथ, सरकार ने अपनी प्राथमिकता बदल दी है। हवाई सर्वेक्षण की समय सीमा 31 दिसंबर 2025 तक बढ़ा दी गई है, जिस पर 1423 करोड़ रुपये से अधिक खर्च होने का अनुमान है।
चार चरणों में होगा सर्वेक्षण
सरकार के अनुसार, नई नियमावली में पारदर्शिता और सटीकता सुनिश्चित करने के लिए बदलाव किए गए हैं। सर्वेक्षण को चार चरणों में पूरा किया जाएगा:
• पहला चरण: जमीन मालिकों से उनकी जमीन का विवरण लिया जाएगा।
• दूसरा चरण: सरकारी कर्मचारी इस विवरण का सत्यापन करेंगे।
• तीसरा चरण: आपत्ति दर्ज कराने का मौका दिया जाएगा।
• चौथा चरण: अंतिम प्रकाशन किया जाएगा।
क्यों लंबा खिंचेगा सर्वेक्षण?
नई नियमावली के तहत, प्रत्येक चरण के लिए अलग-अलग समय सीमा तय की गई है।
• जमीन का विवरण जमा करने के लिए: 180 कार्यदिवस (लगभग 7 महीने)।
• सत्यापन प्रक्रिया के लिए: 90 कार्यदिवस (लगभग 3.5 महीने)।
• आपत्ति दर्ज कराने के लिए: 60 कार्यदिवस (लगभग 2.5 महीने)।
• आपत्तियों के निपटारे के लिए: 60 कार्यदिवस।
• अंतिम प्रकाशन के बाद आपत्तियों के लिए: 90 कार्यदिवस।
इस पूरी प्रक्रिया के लिए लगभग दो साल लग सकते हैं। विधानसभा चुनावों और अन्य प्रशासनिक बाधाओं को जोड़कर, सर्वेक्षण कार्य 2026 से पहले पूरा होना मुश्किल है।
हवाई सर्वेक्षण की देरी
हवाई सर्वेक्षण की समय सीमा 31 दिसंबर 2025 तक बढ़ा दी गई है। इससे यह स्पष्ट है कि सरकार को खुद भी 2025 से पहले सर्वेक्षण कार्य पूरा होने की उम्मीद नहीं है।
विपक्ष का आरोप
विपक्षी दलों ने इस देरी को सरकार की विफलता बताया है। उनका कहना है कि सर्वेक्षण कार्य को गंभीरता से नहीं लिया गया, जिससे लोगों को परेशानी हो रही है। कई लोग, जो सर्वेक्षण प्रक्रिया में भाग लेने के लिए अपने काम-धंधे छोड़कर आए थे, अब और इंतजार करने के लिए मजबूर हैं।
भ्रष्टाचार की आशंका
सर्वेक्षण प्रक्रिया में भ्रष्टाचार की शिकायतें भी सामने आई हैं। अंचलाधिकारियों और राजस्व कर्मचारियों पर घूसखोरी के आरोप लग रहे हैं। लोगों का कहना है कि जायज रसीद के लिए भी पैसे देने पड़ रहे हैं।
लोगों के लिए समस्याएं
भूमि सर्वेक्षण में देरी का सीधा असर लोगों के जमीन से जुड़े कार्यों पर पड़ेगा। जमीन के कागजात न होने के कारण उन्हें अपनी जमीन बेचने, खरीदने या कानूनी मामलों में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।
क्या सरकार को बड़ी घटना का इंतजार है?
इस देरी से लोगों में नाराजगी बढ़ रही है। स्थानीय लोगों ने सरकार से अपील की है कि इस प्रक्रिया को जल्द से जल्द पूरा किया जाए। साथ ही, सर्वेक्षण प्रक्रिया में पारदर्शिता और भ्रष्टाचार पर रोक लगाने की भी मांग की जा रही है।
निष्कर्ष
भूमि सर्वेक्षण की देरी बिहार के लाखों लोगों के लिए चिंता का विषय है। यह न केवल उनके समय और संसाधनों को प्रभावित कर रहा है, बल्कि उनकी रोजमर्रा की जिंदगी में भी समस्याएं पैदा कर रहा है। सरकार को इस मुद्दे पर जल्द से जल्द कार्रवाई करनी चाहिए ताकि जनता को राहत मिल सके।